Saturday 1 January 2011

स्थानीय लोकतंत्र की हक़ीक़त

स्थानीय लोकतंत्र की हक़ीक़त
कल ब्लाक प्रमुख का चुनाव हो गया.जो ब्लाक प्रमुख जीते हैं उन्होने एक-एक क्षेत्र पंचायत सदस्य(B.D.C)को3 लाख से 5 लाख तक दिए हैं .अभी ज़िला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव हुआ हैं जिसमे एक-एक ज़िला पंचयत सदस्य की क़ीमत 25लाख से 60 लाख तक रही.ज़िला पंचायत अध्यक्ष य ब्लाक प्रमुख का चुनाव पूरी तरह गाय- भेंस की खरीद-फ़रोख्त की तर्ज़ पर होता है.ऐसे में अमित भादुडी जैसे अर्थशास्त्रियो को सोचने की ज़रूरत है जिनका कहना हैं -राजसत्ता की नकामी की सबसे अहम वजह रही हैं राजकीय तंत्र का केंद्रीक्रुत दफ्तर्शाहीकरण और स्थानीय लोक्तंत्र पर भरोसे का अभाव मौजूदा राजकीय तंत्र की जगह वैकल्पिक संस्थानिक इंतज़ामात तैयार करने होंगे जो स्थानीय सरकारो,पंचायतो और उनके नीचे की ग्राम सभाओ के ज़रिये काम करे. अगर उन्हें सही ढंग से शक्तिया दी जाए तो यह वैकल्पिक संस्थान ग़रीबो को वेकल्पिक सेवाए मुहैया करने में राजसत्ता की नकामी की समस्या का राजनीतिक समाधान पेश करने में काफ़ी कारगर साबित होगा.दर अस्ल ग़रीबो के मामले मे राजसत्ता की अक्षमता और बाज़ार की निष्ठुरता के बीच के अंतर्विरोध को सुलझाने की ओर बढ़्ने का यही एकमात्र तरीक़ा नज़र आता हे."
सोचने की बात है स्थानीय ग्रामसभा हो ज़िला पंचायत हो य केंद्रीयक्रुत राजसत्ता संसद य विधानसभा उनके मूलचरित्र मे क्या कोई अंतर है?अभी प्रधानी के इलेक्शन मे एक-उम्मीदवार ने 5 लाख से लेकर 25 लाख तक खर्च किए हैं .

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