Friday 8 April 2011

भ्रष्टाचार, अन्ना और जन आंदोलन

जब एक के बाद एक घोटालों की लड़ी लग गई है तो स्वाभाविक रूप से न सिर्फ़ सरकार की किरकिरी हुई है बल्कि भ्रष्टाचार को लेकर जनता में आक्रोश भी पनपा है. अब तक कॉर्पोरेट मीडिया मनमोहन को ईमानदार और आदर्श राजनीतिज्ञ के रूप में पेश करता आ रहा था. अब उसे मनमोहन सिंह पर उँगली उठाने को मजबूर होना पड़ा है. यद्यपि वर्तमान में कोई भी संगठन ऐसा नज़र नहीं आ रहा है जो जनता को लामबंद कर सके. लेकिन मिस्र और अरब देशों में जो कुछ घट रहा है उसे देखकर यहाँ का सत्ता वर्ग बेहद डरा हुआ है. जनता में भ्रष्टाचार को लेकर जो आक्रोश है उससे सत्ता वर्ग परेशान है. राजनीतिक पार्टियों की स्थिति यह है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी इस स्थिति में नहीं है कि वह भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनता को लामबंद कर पाए. अगर ऐसा संभव होता तब भी बात बन जाती. ऐसे में अन्ना हज़ारे शासक वर्ग के लिए डूबते को तिनके का सहारा साबित हुए हैं. वह मीडिया जिसके पत्रकार भ्रष्टाचार में करोड़ों की दलाली कर रहे हैं अन्ना हज़ारे के समर्थन में उठ खड़ा हुआ है. रातों- रात उन्हें अच्छा खासा प्रचार मिल गया है. अगर आप अन्ना के साथ आंदोलन में उतरे लोगों पर नज़र डालेंगे तो और भी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी. किरण बेदी जो दो एन.जी.ओ चलाती हैं, जिन्होने आज तक समाज के हित में किसी भी तरह का काम नहीं किया है फिर भी इंद्रा गांधी की गाड़ी उठवाने के कारण व प्रथम महिला आई.पी.एस के कारण मीडिया ने उन्हें समाज की बेहद खास व्यक्ति बना दिया है. बाबा राम देव जो भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ क़ाफ़ी आक्रामक नज़र आए परंतु जब उनके भ्रष्टाचार की ओर काँग्रेस ने इशारा किया तो उनकी हवा निकल गई. उनके समर्थन में आने वालों में आर.आर.एस और भारतीय जनता पार्टी, उमा भारती, चौटाला आदि हैं. खुद अन्ना बयान दे रहे हैं कि मनमोहन सिंह तो अच्छे व ईमानदार राजनीतिज्ञ हैं उनका रिमोट ग़लत है. मीडिया के प्रचार का आलम यह है कि जो बुद्धिजीवी अपने आप को विचारधारा से तटस्थ बताते हैं वे तुरंत अन्ना के समर्थन में आ गए और अब तो मार्क्सवादी संगठन भाकपा(माले) भी समर्थन में उतर आया है. यह जानते हुए भी कि यह भ्रष्टाचार के खिलाफ़ व्यवस्था के अंदर लड़ी जाने वाली लड़ाई है. और भ्रष्टाचार पर कोई विशेष प्रभाव इससे नही पड़ेगा. यही वजह है मीडिया इस आंदोलन को अच्छी खासी हवा दे रहा है.
सोचने की बात यह है कि जिस लोकपाल बिल के लिए अन्ना को मीडिया इतना प्रचारित कर रहा है क्या इससे भ्रष्टाचार में कोई फ़र्क़ आएगा? दर अस्ल लोकपाल बिल भी भ्रष्टाचार रोकने को सरकार ने जो ढेर सारे कानून बना रखे हैं उनसे बहुत अलग नहीं है, सिवा इसके कि लोकपाल को चुनने की प्रक्रिया थोड़ी भिन्न है और उसे कुछ शक्तियां अधिक दे दीं हैं. अलबत्ता यह सोचने की बात है कि जो व्यक्ति नौकरशाह, क्लर्क, नेता बनता है वह क्यों भ्रष्ट हो जाता है. फिर इस बात का कोई जवाब नहीं है कि लोकपाल बिल का हासिल भी वही नहीं होगा जो दूसरे भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों का हुआ है? जो भी हो अन्ना फ़िलहाल जनता का ध्यान भटकाने में सफल रहे हैं. या कहो कॉर्पोरेट मीडिया का प्रयास सफल हो गया है. दर अस्ल जनता में जो व्यवस्था विरोधी दबाब बढ़ रहा है उस दबाब को कम करने के लिए अन्ना जैसे सेफ्टी बाल्व की सरकार को ज़रूरत भी थी.

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