Friday 27 May 2011

भ्रष्टाचार जिसे आमतौर पर भ्रष्टाचार ही नहीं समझा जाता

तमाम तरह के भ्रष्टाचार समाज में उजागर होते रहते हैं. आज भ्रष्टाचार समाज में इस क़दर हावी है कि आम आदमी ने भ्रष्टाचार को वर्तमान सामाजिक व्यवस्था का अभिन्न अंग समझ लिया है. आज आए दिन बड़े - बड़े भ्रष्टाचार उजागर होते रहते हैं. लेकिन तमाम तरह के भ्रष्टाचार ऐसे हैं जिनके बारे में लोगों का ध्यान बिलकुल नहीं जाता है जबकि ये किसी बड़े भ्रष्टाचार से बिलकुल कम नहीं होते. मैं यहाँ एक उदाहरण दे रहा हूँ-
आँकड़े बताते हैं देश में 80 करोड़ से अधिक मोबाइल धारक हैं जिन्हें ऐअरटेल, वोडा, टाटा, रिलायंस जैसी तमाम कंपनियां अपनी सेवाएं प्रदान करती हैं. ये कंपनियां प्रतिदिन करोड़ों की ठगी करती हैं. जैसे बिना बताए टॉन लगा देती हैं और पैसे काट लेती हैं. दर अस्ल इन कंपनियों के पास ठगी करने के हज़रों तरीक़े है. कुछ घटनाएं जिनका मैं भुक्तभोगी रहा हूँ उनका ज़िक्र मैं यहाँ करता हूँ-
सन 2005 में हच कंपनी से एक व्यक्ति मेरे पास आया और उसने मुझे एक प्लान समझाया. जिसमें 300 रु. माह के पोस्ट पेड रेंटल 450 मिनट फ़्री थे( जहाँ तक मुझे याद आ रहा है) बाद में पता चला वे लोकल हच से हच पर थे. प्लान लेने के बाद जब उसके एक्ज़िक़्युटिव ने मुझसे बात की और मैंने उससे कहा कि तुमने मुझे चीट किया है तो उसका जवाब था - कंपनी हमें इसी बात के पैसे देती है. इसी तरह कई बार मेरे 20-30 रु यह कह कर काट लिए गए कि आपने गेम,पिक्चर य वाल पेपर डाउनलोड किया है. कुछ माह पहले मेरे रिलायंस के नंबर पर 20 रु माह बार मैसेज पैक के काट लेता था. एक बार उस पर यह पैक डलवाया था उसके बाद जैसे सिलसिला चल पड़ा. कई बार उसे डिएक्टिवेट करने की कोशिश की. हर बार रिक्वेस्ट फॉरवर्ड करके 3 दिन में डिएक्टिवेट करने के लिए बोलता था और उसके बाद फिर एक्टिव कर देता था. दर अस्ल ऐसा नहीं है कि उनके पास तकनीक का अभाव है, अगर वे चाहें तो 5 सेकंड में दिएक्टिवेट कर सकते हैं लेकिन वे ऐसा इसलिए करते हैं कि उनकी नीयत ख़राब है और वे किसी भी बहाने से उपभोक्ता का पैसा लूटना चाहते हैं. ऐसे ही आप अपने फॉन पर इंटरनेट पैक डलवाते हैं. आप यह सोचकर नेट खोलेंगे कि आपने पैक डलवा लिया है. जब आप सर्फ़ कर चुके होंगे तो आपका बैलेन्स कट जाएगा. आप कस्टमर केयर पर बात करेंगे तो बताएगा कि आपका पैक 24 घंटे बाद एक्टिव होगा. कोई दूसरी कंपनी और अधिक बदमाशी कर सकती है मतलब पैसा तुरंत न काट के 4-6 घंटे बाद काटेगी और तब तक आप 1-2 बार और नेट खोल चुके होंगे. इस तरह हम देखते हैं कि कंपनियों के पास बेइमानी करने के हज़ार तरीक़े हैं. मॉबाइल आज हर आदमी की ज़रूरत बन गया है परंतु आम आदमी कंपनियों की इस लूटपाट से खासा त्रस्त है. कोई सर्विस कॉल आती है तो लोग तुरंत उसे डिकनेक्ट कर देते हैं मानो पूरी बात सुनने भर से उनके पैसे कट जाएँगे.
इस तरह कंपनियां करोड़ो की रोज़ बेइमानी करती हैं. बहुत से भोले-भाले लोग सोचते हैं कि इसके लिए कॉर्ट कंज्यूमर फ़ॉरम वगैरह बने हैं अगर समाज में चेतना हो तो इन्हें रोका जा सकता है. कई साल पहले मैने अखबार में एक खबर पढ़ी थी. एयरटेल ने एक लड़की के नंबर पर कॉलर टॉन एक्टिव कर के पैसे काट लिए. लड़की कंज्यूमर फ़ोरम में चली गई. 3 साल बाद कॉर्ट ने कंपनी पर कुछ सौ रु. का ज़ुर्माना कर दिया. आदमी के पास न तो इतना समय है कि वह 25-50 रु. के लिए सालों कॉर्ट के चक्कर लगाए और न वक़ील को देने के लिए पैसा है. फिर न्यायपालिका विधायिका या कार्यपालिका का मंतव्य भी ऐसा नहीं है कि वह कॉर्पोरेट की ऐसी बेइमानी को रोकना चाहे. अगर कंपनी की 50 रु. की बेइमानी के ख़िलाफ़ आप कोर्ट जाएंगे तो वह आपको 10 साल में 200 रु. ज़ुर्माना दिलवा देगा. ऐसे में इस बुरी व्यवस्था को समाप्त किए बिना कंपनियों की करोड़ों की रोज़ की बेइमानी से छुटकारे का और कोई रास्ता नज़र नहीं आता.

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