Sunday 18 August 2013

भाषा के पीछे छिपता क्रूरता का असली चेहरा

      कुछ दिन पहले ऑफिस में तीन चार लोग खड़े थे.पूंजीवाद पर बात करने लगे.एक लड़का जो सिविल की तैयारी कर रहा है बोला अब न पूंजीवाद है न कम्युनिज्म अब कल्याणकारी राज्य है,वेलफेयर सोसाइटी.दिन-प्रतिदिन इस पूंजीवादी व्यवस्था की क्रूरताएं बढ़ती जा रही हैं,आम आदमी का जीना दूभर होता जा रहा है फिर ऐसा क्या हो गया कि हमारी यह क्रूर व्यवस्था कल्याणकारी हो गयी.दरअस्ल भाषा के महत्व को शासक वर्ग भली भांति समझता है.कई बार वह अपने क्रूर चेहरे को भाषा के मुखोटे के पीछे छिपाने में सफल भी हो जाता है. इसलिए जब पूंजीवाद ने अपने खूनी पंजे और तेज़ कर लिए हैं आम आदमी के शोषण के नित नए तरीके वह ईजाद कर रहा है तब वह अपने आप को कल्याणकारी राज्य कहने लगा है.
     ऐसे ही नब्बे के दशक से निजीकरण का दौर चला .यह शब्द अपने आप में इतना बदनाम हो गया निजीकरण के समर्थक भी इस शब्द को बोलने में संकोच करने लगे.इस शब्द से ऐसा भाषित होता था कि सरकारें सार्वजनिक संसाधनों को पूंजीपतियों को बाँट रही हैं यही सच था और निजीकरण शब्द इसके लिए सबसे उपयुक्त था. लेकिन इस शब्द की बदनामी को देखते हुए शासक वर्ग ने उसके लिए एक अच्छा सा शब्द खोज लिया है -P.P.P. यानी प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप.मीडिया ने जनता में यह शब्द रवां कर दिया और आज आम आदमी की जुबां पर भी निजीकरण की जगह यही शब्द रहता है.
       NGO इस भ्रष्ट व्यवस्था का एक प्रभावशाली अंग बन गया है. यूं तो जाने अनजाने हर व्यक्ति ही आज की इस भ्रष्ट व्यवस्था का हिस्सा बनने को विवश है पर NGO राजनीति की तरह भ्रष्टाचार का एक संगठित रूप है.उसके इस स्वरूप को अब आम आदमी जानने लगा है. भाषा कैसे-कैसे अर्थ रखती है यह बात मैंने कुछ दिन पहले एक कैंटीन चलाने वाले से बात करते हुए महसूस की .इस देश में हिंदी पर अंग्रेजी को तर्जीह देने का चलन है पर NGO वाले अब अपने आप को हिंदी में समाजसेवी संगठन ,समाज सेवी  बताने को तर्जीह देने लगे हैं. अगर अंग्रेजी में ही कहना हो तो सिविल सोसाइटी कहना पसंद करते हैं .
     नीरा राडिया का मामला हमें याद होगा .हमें यह भी याद होगा कि शुरू में मीडिया में राडिया को कॉर्पोरेट दलाल कहा था पर बाद में वह उसे कॉर्पोरेट लोबिस्ट कहने लगा . इसी तरह बड़े-बड़े अपराधी नेताओं को बाहुबली कहा जाता है.
 जैसे जैसे व्यवस्था की क्रूरता बढ़ती जाएगी वैसे-वैसे वह उस क्रूरता को ढकने के लिए भाषा को मुखौटा के रूप में इस्तेमाल करती जाएगी.इसलिए भाषा पर पैनी नज़र रखने की ज़रुरत है.
    

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