Sunday 9 January 2011

मूल्य और मीडिआ

मूल्य और मीडिआ
-राम प्रकाश अनंत
अक्सर हम रोना रोते हैं कि समाजिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है. प्रत्यक्ष रूप से यह देख भी जा रहा है कि जीवन के हर क्षेत्र का अवमूल्यन हुआ है. जो व्यक्ति को समाज से काट कर देखते हैं उनके लिए इसकी व्याख्या बहुत सीधी हैं. यानी सामाजिक पतन को रोकने के लिए लोगों के आचरण में नैतिक एवं धार्मिक उपदेशों द्वारा सुधार की आवश्यकता है. दर असल यह समझने की आवश्यकता है कि जब संपूर्ण समाज का पतन हो रहा है तब उसके कारण समाजिक आधार में ही सन्नहित हैं और बिना उस आधार को बदले आप सामाजिक पतन को रोक नहीं सकते. दर असल पूंजीवादी प्रवृत्तियों ने पूरे सामाजिक आधार को इस क़दर मूल्यहीन बना दिया है कि एक संदर्भ में हम जिसे नैतिक पतन कहते हैं दूसरे संदर्भ में उसे नैतिक मूल्य कहते हैं क्योंके पूंजीवाद के हित उससे जुड़े होते हैं. कुछ समय पहले धोनी एवं सचिन मीडिया मे छाए रहे. धोनी इसलिए कि उन्होने माल्या के साथ अब तक की सबसे बडी डील की है और सचिन छाए रहे कि उन्होने उसी डील को ठुकरा कर उच्च नैतिक मूल्य स्थापित किए है. मीडिआ ने उनके बारे में लिखा कि सचिन ने साबित कर दिया कि पैसा ही सब कुछ नहीं होता है नैतिक मूल्य भी होते हैं. अगर वास्तव में नैतिक मूल्यों का मामला होता तो मीडिआ को धोनी के बारे में लिखना चाहिए था कि धोनी ने यह साबित कर दिया कि पैसा ही सब कुछ है मूल्यों का कोई अर्थ नहीं है. दर असल मीडिआ का मूल्यों से कुछ लेना देना नहीं है. उसका उद्देश्य है, उसने जो आइडल बनाए हैं उनकी छवि को बनाए रखना(ताकि वे कंपनियों का माल बेच सकें). उसने सचिन और धोनी दोनो का ज़बर्दस्त प्रचार किया.सचिन को इतना प्रचार सिर्फ़ गोपनीय सूचना के आधार पर ही मिल गया. जबकि ऐसा भी संभव है कि इस तरह की कोई डील हुई ही न हो. सोचने की बात है कि इस मीडिया गुणगान से किसे फ़ाइदा हुआ और किसे नुक़सान? इसका समाज पर क्या असर पड़ा?ज़ाहिर सी बात है कि इससे धोनी, सचिन और उन कंपनियों को फ़ाइदा हुआ जिनका वे प्रचार करते हैं. इसका समाज पर यह असर पड़ा कि पैसा कमाना बड़ी चीज़ है चाहे वह शराब के प्रचार से कमाया जाए या किसी दूसरे तरीके से.
सचिन ने अभी अभी कोला के साथ 20 करोड़ की डील की है. माल्या की शराब का विज्ञापन न करना नैतिक मूल्यों की स्थापना है तो कोला का प्रचार करना नैतिक मूल्यों को ध्वस्त करना क्यों नहीं हैं. जबकि यह साबित हो चुका है कि जो पदार्थ इन द्रबो में मिलाए जाते हैं वे शराब की ही तरह स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक़ है.इससे सिद्ध हो जाता है कि मीडिआ किन मूल्यो को स्थापित करता है.मीडिआ जैसे माध्यम का सामाजिक मूल्यो पर गहरा प्रभाव पड़्ता है.अब हम समझ गए होंगे कि सामाजिक मूल्यों का जो पतन हो रहा है वह कहाँ से संचालित है और उसे बदलने के लिए हमें क्या बदलना होगा.

Saturday 1 January 2011

स्थानीय लोकतंत्र की हक़ीक़त

स्थानीय लोकतंत्र की हक़ीक़त
कल ब्लाक प्रमुख का चुनाव हो गया.जो ब्लाक प्रमुख जीते हैं उन्होने एक-एक क्षेत्र पंचायत सदस्य(B.D.C)को3 लाख से 5 लाख तक दिए हैं .अभी ज़िला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव हुआ हैं जिसमे एक-एक ज़िला पंचयत सदस्य की क़ीमत 25लाख से 60 लाख तक रही.ज़िला पंचायत अध्यक्ष य ब्लाक प्रमुख का चुनाव पूरी तरह गाय- भेंस की खरीद-फ़रोख्त की तर्ज़ पर होता है.ऐसे में अमित भादुडी जैसे अर्थशास्त्रियो को सोचने की ज़रूरत है जिनका कहना हैं -राजसत्ता की नकामी की सबसे अहम वजह रही हैं राजकीय तंत्र का केंद्रीक्रुत दफ्तर्शाहीकरण और स्थानीय लोक्तंत्र पर भरोसे का अभाव मौजूदा राजकीय तंत्र की जगह वैकल्पिक संस्थानिक इंतज़ामात तैयार करने होंगे जो स्थानीय सरकारो,पंचायतो और उनके नीचे की ग्राम सभाओ के ज़रिये काम करे. अगर उन्हें सही ढंग से शक्तिया दी जाए तो यह वैकल्पिक संस्थान ग़रीबो को वेकल्पिक सेवाए मुहैया करने में राजसत्ता की नकामी की समस्या का राजनीतिक समाधान पेश करने में काफ़ी कारगर साबित होगा.दर अस्ल ग़रीबो के मामले मे राजसत्ता की अक्षमता और बाज़ार की निष्ठुरता के बीच के अंतर्विरोध को सुलझाने की ओर बढ़्ने का यही एकमात्र तरीक़ा नज़र आता हे."
सोचने की बात है स्थानीय ग्रामसभा हो ज़िला पंचायत हो य केंद्रीयक्रुत राजसत्ता संसद य विधानसभा उनके मूलचरित्र मे क्या कोई अंतर है?अभी प्रधानी के इलेक्शन मे एक-उम्मीदवार ने 5 लाख से लेकर 25 लाख तक खर्च किए हैं .